Thursday, February 7, 2013

~~~ एक नास्तिक प्रश्न ~~~




यह किसके गुण  गाये जा रहे हो ?
यह क्या अध्बुध वर्णन है ?
यह मार्ग किस ओर जाता है ?

जिसका न शारीर है न सर है न पैर;
न वो कोई मूर्ति है जो दिखे ,
न उसे प्रेम है और न  है कोई वैर -

छु सकते है क्या हम उसको ?
उसके पास तो बदन ही नहीं -

प्रीत के इस विशाल भंवर में
छिड़े न कोई नाद ,
तो क्रंदन ही सही 

उजड़ी उजड़ी सी दुनिया है
यह क्या है जो गूँज रहा है ?

उजड़ रहा है कोई,
और कही मिल रहा

है एक प्रेम और कोई तारा;
यूँ अंतर ह्रदय के भीतर,
उमड़ रहा है  यूँ जगत  सारा
खिल रहे है फूल ,
उग रहा है एक
उज्जवल सूरज दोबारा -
कहाँ  है  निर्गुण, निर्लेप भगवन तुम्हारा ?

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