यह किसके गुण गाये जा रहे हो ?
यह क्या अध्बुध वर्णन है ?
यह मार्ग किस ओर जाता है ?
जिसका न शारीर है न सर है न पैर;
न वो कोई मूर्ति है जो दिखे ,
न उसे प्रेम है और न है कोई वैर -
छु सकते है क्या हम उसको ?
उसके पास तो बदन ही नहीं -
प्रीत के इस विशाल भंवर में
छिड़े न कोई नाद ,
तो क्रंदन ही सही
उजड़ी उजड़ी सी दुनिया है
यह क्या है जो गूँज रहा है ?
उजड़ रहा है कोई,
और कही मिल रहा
है एक प्रेम और कोई तारा;
यूँ अंतर ह्रदय के भीतर,
उमड़ रहा है यूँ जगत सारा
खिल रहे है फूल ,
उग रहा है एक
उज्जवल सूरज दोबारा -
कहाँ है निर्गुण, निर्लेप भगवन तुम्हारा ?
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